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तरक्की हर कोई चाहता है। स्थिरता हर किसी को विचलित करती है। लेकिन, परेशानी ये है कि हर किसी के साथ कुछ स्थायी समस्याएं हैं। तरक्की इनोवेशन चाहती है। कुछ लोग नया सोचते हैं, लेकिन ज्यादातर लोग अपने तयशुदा और टेस्टेड नुस्खों पर ही यकीन करते हैं। कार्पोरेट कल्चर में तो ये और ज्यादा बड़ा चैलेंज है कि आप रोज नया क्या दे सकते हैं।
ज्यादातर लोगों के सामने दो तरह की समस्याएं आती हैं। एक तो वो अपने पुराने अचीवमेंट्स से दिमागी तौर पर लदे हुए होते हैं। कुछ नया करने के पहले अपनी पुरानी इमेज को सामने लाकर रख लेते हैं। दूसरी समस्या है ईगो की। अक्सर जब दो-चार लोग साथ में काम करते हैं तो ईगो का टकराव काम को आगे बढ़ाने में आ जाता है। अध्यात्म दोनों समस्याओं का समाधान देता है।
- भविष्य को पकड़ना है, तो अतीत का बोझ उतार दें
अगर परिवर्तन के इस दौर में आपको भविष्य से डर लगता है, तो समझिए आपने अपने कंधों पर अतीत की गठरी उठा रखी है। मेरे अचीवमेंट्स, मेरे काम, मेरा नाम। ये वो चीजें हैं जो आपको कुछ नया करने से रोकती भी हैं, डराती भी हैं। अतीत के चैप्टर को बंद कर दीजिए। मुश्किल है…? बिल्कुल नहीं। वो सारी चीजें जो आपको बताती हैं कि आपने कितने बड़े-बड़े काम किए हैं, अपने सामने से हटा दीजिए।
लोग अक्सर पुरानी ट्रॉफी, सर्टिफिकेट्स, अवार्ड्स को आंखों के सामने या सिर के ऊपर की ओर सजाकर रखते हैं। जरुरत क्या है…? ये तो गुजर गया है। स्मृति मात्र है। हटा दीजिए। ये वो मोह है जो आपको आगे बढ़ने नहीं देता, कुछ नया नहीं करने देता, प्रयोग करने से डराता है, खींच कर वापस गुजरे समय में ले आता है। आज के दौर में तरक्की का सिंपल फार्मूला है, कुछ नया किया जाए। लेकिन, पुरानी चीजें नया करने से डराती हैं। भविष्य का दामन तभी थाम पाएंगे, जब अतीत की गठरी को उतार कर रख देंगे।
- ईगो से जीतना है, तो हार जाइए
अक्सर दो लोगों में विवाद किसी बात का नहीं, ईगो का होता है। कोई झुकने को तैयार नहीं। कॉर्पोरेट कल्चर में तो ये और बड़ा मुद्दा है। अनुभव और इनोवेशन, मतलब पुरानी और नई पीढ़ी के बीच की सोच का अंतर। दोनों अपने पक्ष को सही मान रहे होते हैं। ईगो की लड़ाई कभी जीती नहीं जा सकती। झुकना कोई नहीं चाहेगा। कोशिश कीजिए आप झुक जाएं। छोटा बनने में भी बहुत सुख है। सुख ना भी हो, तो सुविधा तो है ही।
सुरसा के मुंह के आगे बार-बार अपना कद बढ़ाते हनुमान भी परेशान हो गए थे। वहां भी मसला ईगो का था। कोई छोटा नहीं होना चाहता था। हनुमान ने बुद्धिमानी दिखाई। छोटे हो गए। सुरसा की जिद का मान रख लिया। उसके मुंह में घूमकर निकल आए। सुरसा खुश हो गई। हनुमान को जाने दिया। एक ने अपना ईगो छोड़ दिया तो दूसरे का ईगो अपने आप खत्म हो गया। झगड़े खत्म करना है तो आज अपने ईगो को खत्म करके कुछ देर के लिए छोटे बन जाइए। झगड़ा अपने आप खत्म हो जाएगा।
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