महाभारत और भागवत पुराण में राजा पौंड्रक की कथा बताई गई है। राजा पौंड्रक ने खुद को असली कृष्ण घोषित कर रखा था। वह स्वयं को भगवान विष्णु का अवतार बताता था। वह पुंड्र देश का राजा था। कुछ लोक कथाओं में उसे काशी का राजा बताया गया है।
पौंड्रक कुछ विद्याएं जानता था। विद्याओं का प्रयोग करके उसने स्वयं का स्वरूप श्रीकृष्ण की तरह बना लिया था। उसके पास नकली सुदर्शन चक्र था। श्रीकृष्ण के जैसी कौस्तुभ मणि, शंख, मोर पंख जैसी सारी चीजें उसके पास भी थीं। वह द्वारिकधीश श्रीकृष्ण को नकली बताता था। भगवान श्रीकृष्ण बहुत समय तक पौंड्रक की इन गलतियों को क्षमा करते रहे।
राजा पौंड्रक ने द्वारिका में श्रीकृष्ण को संदेश भेजा था कि अब धरती पर भगवान विष्णु का असली अवतार हो चुका है। अत: तुम द्वारिका छोड़कर भाग जाओ। अन्यथा युद्ध के लिए तैयार रहो। इस संदेश के बाद श्रीकृष्ण और बलराम पौंड्रक से युद्ध करने के लिए चल दिए।
युद्ध में पौंड्रक में ठीक वैसा ही स्वरूप बना रखा था, जैसा कि श्रीकृष्ण का था। पौंड्रक भी युद्ध विद्या का जानकार था। उसका और श्रीकृष्ण का घमासान युद्ध हुआ और अंत श्रीकृष्ण ने पौंड्रक का अंत कर दिया। पौंड्रक का उद्धार करने के बाद श्रीकृष्ण पुन: अपनी द्वारिका लौट गए।
इस प्रसंग की सीख यह है कि झूठ लंबे समय तक नहीं टिकता है। एक दिन सत्य से झूठ पराजित जरूर होता है।
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