श्रीरामचरित मानस के अरण्यकांड में रावण सीता हरण की योजना बनाकर सबसे पहले मारीच के पास पहुंचा। रावण ने मारीच को प्रणाम किया। रावण को झुका देखकर मारीच समझ गया कि अब कोई संकट आने वाला है। क्योंकि, रावण कभी किसी के सामने झुकता नहीं था। किसी नीच व्यक्ति का झुकना दुख दाई ही होता है।
रावण ने मारीच से कहा कि तुम छल-कपट करने वाले स्वर्ण मृग बनो, ताकि में सीता का हरण कर सकूं।
मारीच ने रावण को समझाया कि वह ये काम न करे। श्रीराम से दुश्मनी करने में हमारा हित नहीं है। श्रीराम विष्णुजी के अवतार हैं। मारीच की ये बातें सुनकर रावण क्रोधित हो गया। वह अपनी शक्तियों का घमंड करने लगा। इसके बाद मारीच को समझ आ गया कि रावण को समझाना असंभव है। सीता हरण के लिए उसकी मदद करने में ही भलाई है। रावण के हाथों मरने से अच्छा है कि मैं श्रीराम के हाथों से मरूं।
श्रीरामचरित मानस में लिखा है कि-
तब मारीच हृदयँ अनुमाना। नवहि बिरोधें नहिं कल्याना।।
सस्त्री मर्मी प्रभु सठ धनी। बैद बंदि कबि भानस गुनी।।
इस चौपाई के अनुसार मारीच सोचने लगा कि नौ लोगों से विरोध करने में हमारा कल्याण नहीं है। ये नौ लोग हैं शस्त्रधारी, हमारे राज जानने वाला, समर्थ स्वामी, मूर्ख, धनवान व्यक्ति, वैद्य, भाट, कवि और रसोइयां। इन नौ लोगों की बातें तुरंत मान लेनी चाहिए। इनका विरोध करने पर हमारे लिए परेशानियां बढ़ सकती हैं।
ये सोचकर मारीच ने रावण की बात मान ली और वह स्वर्ण मृग का रूप धारण करके सीता के सामने पहुंच गया। जब सीता ने सुंदर हिरण देखा तो श्रीराम से उसे लाने के लिए कहा। श्रीराम हिरण को पकड़ने के लिए उसके पीछे चले गए। श्रीराम के बाण से मारीच यानी स्वर्ण मृग मारा गया। दूसरी ओर रावण ने अपनी योजना के अनुसार सीता का हरण कर लिया।
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