हर महीने के शुक्लपक्ष की छठी तिथि पर भगवान शिव और माता पार्वती के पुत्र भगवान कार्तिकेय की पूजा करने से हर तरह के फायदे मिलते हैं। इस बार यह षष्ठी तिथि 26 जून यानी आज मनाई जा रही है। हालांकि यह त्योहार दक्षिण भारत में खासतौर से मनाया जाता है, लेकिन भगवान भोलेनाथ और स्कंदमाता यानी पार्वती की पूजा पूरे देश में होने से इस दिन सभी मंदिरों में भगवान कार्तिकेय की पूजा भी होगी। इस पर्व को बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक भी माना जाता है, क्योंकि इस तिथि पर कुमार कार्तिकेय ने तारकासुर नामक राक्षस का वध किया था। यह षष्ठी महीने में एक बार आती है। इस व्रत को करने से संतान सुख बढ़ता है। दुश्मनों पर जीत के लिए भी भगवान कार्तिकेय का व्रत और पूजा की जाती है।
क्यों कहा जाता है स्कंद षष्ठी
मां दुर्गा के 5वें स्वरूप स्कंदमाता को भगवान कार्तिकेय की माता के रूप में जाना जाता है। वैसे तो नवरात्रि के 5वें दिन स्कंदमाता का पूजन करने का विधान है। इसके अलावा इस षष्ठी को चम्पा षष्ठी भी कहते हैं, क्योंकि भगवान कार्तिकेय को सुब्रह्मण्यम के नाम भी पुकारते हैं और उनका प्रिय पुष्प चम्पा है।
पूजा और व्रत के नियम
स्कंद षष्ठी पर भगवान शिव और पार्वती की पूजा की जाती है। मंदिरों में विशेष पूजा की जाती है। इसमें स्कंद देव (कार्तिकेय) की स्थापना और पूजा होती है। अखंड दीपक भी जलाए जाते हैं। भगवान को स्नान करवाया जाता है। भगवान को भोग लगाते हैं। इस दिन विशेष कार्य की सिद्धि के लिए कि गई पूजा-अर्चना फलदायी होती है। इस दिन मांस, शराब, प्याज, लहसुन का त्याग करना चाहिए। ब्रह्मचर्य का पालन करना जरूरी होता है। पूरे दिन संयम से भी रहना होता है।
पूजा विधि
मंदिर में भगवान कार्तिकेय की विधिवत पूजा करें। उन्हें बादाम, काजल और नारियल से बनीं मिठाइयां चढ़ाएं। इसके अलावा बरगद के पत्ते और नीले फूल चढ़ा कर भगवान कार्तिकेय की श्रद्धा पूर्वक पूजा करें।
भगवान कार्तिकेय की पूजा दीपक, गहनों, कपड़ों और खिलौनों से की जाती है। यह शक्ति, ऊर्जा और युद्ध के प्रतीक हैं।
संतान के कष्टों को कम करने और उसके अनंत सुख के लिए भगवान कार्तिकेय की पूजा की जाती है।
इसके अलावा किसी प्रकार के विवाद और कलह को समाप्त करने में स्कंद षष्ठी का व्रत विशेष फलदायी है।
Download Dainik Bhaskar App to read Latest Hindi News Today
from Dainik Bhaskar https://ift.tt/2VgMAmz
via IFTTT
0 Comments